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राष्ट्रपति शासन में कैसे चलता है राज्य का प्रशासन, कौन संभालता है मंत्रियों का काम

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हिंसा प्रभावित मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है. एन बीरेन सिंह के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के कुछ दिन बाद राज्य में गुरुवार को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. राज्य विधानसभा को भी निलंबित कर दिया गया है, जिसका कार्यकाल 2027 तक है. मणिपुर में भाजपा सरकार का नेतृत्व करने वाले एन बीरेन सिंह ने करीब 21 महीने की जातीय हिंसा के बाद रविवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. इस हिंसा में अब तक 250 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है.

क्या होता है राष्ट्रपति शासन?
जब किसी राज्य की सरकार संविधान के अनुसार ठीक तरीके से काम नहीं कर पाती है, तो उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है. संविधान का अनुच्‍छेद-356 केंद्र सरकार को किसी भी राज्य सरकार को हटाकर प्रदेश का नियंत्रण अपने हाथ में लेने का अधिकार देता है. इसका मतलब है कि राज्य में केंद्र सरकार के नियम व कानून लागू हो जाते है, यानी उस राज्य के प्रशासन का नियंत्रण राष्ट्रपति के पास आ जाता है. राष्ट्रपति शासन में केंद्र सरकार संबंधित राज्य का नियंत्रण सीधा अपने हाथ में ले लेती है और राज्यपाल उसका संवैधानिक मुखिया बन जाता है.

राष्ट्रपति शासन लगने की स्थिति में राज्यपाल, जो राष्ट्रपति के प्रतिनिधि होते हैं, राज्य का प्रशासनिक नियंत्रण अपने हाथ में ले लेते हैं. इसका अर्थ है कि उस राज्य का प्रशासन राज्यपाल द्वारा संभाला जाता है. विधानसभा या तो भंग कर दी जाती है या उसका सत्रावसान कर दिया जाता है. जिसमें मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद को उनके पदों से हटा दिया जाता है. ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग को छह महीने के भीतर फिर से चुनाव कराने के लिए बाध्य होना पड़ता है. इस प्रक्रिया में राज्य के प्रशासन का पूरा नियंत्रण केंद्र सरकार के हाथ में आ जाता है. सभी फैसले राष्ट्रपति की सहमति से लिए जाते हैं.

राष्ट्रपति शासन लागू होने की स्थिति में उस राज्य की सरकार की भूमिका पूरी तरह से खत्म हो जाती है. राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री और उनकी कैबिनेट को तुरंत अपना पद छोड़ना पड़ता है. इसका मतलब है कि राज्य में कोई भी प्रशासनिक फैसला सरकार का कोई मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं ले सकता. राज्य का प्रशासन राज्यपाल के हाथों में चला जाता है. राज्यपाल का मुख्य कार्य यह सुनिश्चित करना होता है कि राज्य में कानून-व्यवस्था बनी रहे और प्रशासन सुचारू रूप से चले. राज्य के सभी अधिकारी और कर्मचारी भी राज्यपाल और केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुसार काम करते हैं. सभी योजनाओं और कार्यक्रमों को भी केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद लागू किया जाता है.

राष्ट्रपति शासन लागू होने की घोषणा की तारीख से दो माह के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा (सामान्य बहुमत से) इसका अनुमोदन हो जाना चाहिए. यदि संसद के दोनों सदनों द्वारा इसका अनुमोदन कर दिया जाता है तो राष्ट्रपति शासन छह माह तक चलता रहेगा. इस प्रकार 6-6 माह करके इसे तीन साल तक लगाया जा सकता है.

राष्ट्रपति शासन के दौरान राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रीपरिषद को भंग कर देता है. राष्ट्रपति, राज्य सरकार के सभी काम अपने हाथ में ले लेता है और उसे राज्यपाल और अन्य कार्यकारी अधिकारियों द्वारा करवाया जाता है. राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति के नाम पर राज्य सचिव की मदद से या राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किसी सलाहकार की मदद से राज्य का शासन चलाता है. इसी वजह से अनुच्छेद 356 के अंतर्गत की गयी घोषणा को राष्ट्रपति शासन कहा जाता है. राष्ट्रपति, घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का इस्तेमाल संसद करेगी.

 

संसद को यह अधिकार है कि वह राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति राष्ट्रपति अथवा उसके किसी नॉमिनेटेड अधिकारी को दे सकती है. जब संसद नही चल रही हो तो राष्ट्रपति, ‘आर्टिकल 356 शासित राज्य’ के लिए कोई अध्यादेश जारी कर सकता है. राष्ट्रपति अथवा संसद अथवा किसी अन्य विशेष प्राधिकारी द्वारा बनाया गया कानून, राष्ट्रपति शासन के हटने के बाद भी प्रभाव में रहेगा. परंतु इसे राज्य विधायिका द्वारा संशोधित या पुनः लागू किया जा सकता है. एक दिलचस्प तथ्य यह है कि इस मौके को मिलाकर सबसे ज्‍यादा 11 बार राष्‍ट्रपति शासन मणिपुर में ही लगाया गया है.

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