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सरकार ने RBI पर फाड़ा इकॉनमिक स्लोडाउन का बिल, दास साहब की हुई विदाई, अब मल्होत्रा जी के सामने बड़ी मुश्किल

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देश की अर्थव्यवस्था में सुस्ती छाई हुई है और इसकी वजह से खपत में कमी. इस वजह से शेयर बाजार भी गिर रहा है. इकोनॉमी में इस मंदी के लिए सरकार ने अप्रत्यक्ष रूप से रिजर्व बैंक की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है. दरअसल, वित्त मंत्रालय की एक रिपोर्ट में गुरुवार को कहा गया है कि आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी का रुख और केंद्रीय बैंक की नीतियो के चलते अर्थव्यवस्था में मंदी देखने को मिली है. खास बात है कि मंदी को लेकर यह वित्त मंत्रालय की यह पहली आधिकारिक टिप्पणी है, जो कुछ हद तक इस हालात के लिए आरबीआई को दोषी मान रही है.

दरअसल, दूसरी तिमाही में (जुलाई-सितंबर) में विकास दर घटकर सात तिमाही के निचले स्तर 5.4% पर आ गई. इस वजह से आरबीआई पर ब्याज दरों में कटौती करने का दबाव बढ़ गया, जबकि केंद्रीय बैंक ने महंगाई पर नियंत्रण रखने के चलते दिसंबर में लगातार 11वीं बार दरों में कोई बदलाव नहीं किया. उधर सरकार शहरी डिमांड में कमी से परेशान है, जिसके चलते अर्थव्यवस्था डगमागा रही है.

रिपोर्ट में वित्त मंत्रालय ने क्या कहा

फाइनेंस मिनिस्ट्री ने रिपोर्ट में कहा, “यह मानने के अच्छे कारण हैं कि वित्त वर्ष 2025 की दूसरी छमाही में ग्रोथ का नजरिया, पहली छमाही (पहली छमाही) से बेहतर है. साथ ही, इस संभावना से इंकार नहीं किया जाना चाहिए कि पहली छमाही में स्ट्रक्चरल फैक्टर्स के चलते इकोनॉमी में मंदी देखने को मिली.” वित्त मंत्रालय की मासिक आर्थिक रिपोर्ट में आरबीआई द्वारा नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को 4.5 से कम करने के कदम की सराहना की गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस कदम से लोन ग्रोथ को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी, जो वित्तीय वर्ष 2024-25 में थोड़ी बहुत और तेजी से धीमी हो गई है.

ऐसी उम्मीदें हैं कि आरबीआई फरवरी में अपनी नई मौद्रिक नीति में फरवरी में ब्याज दरों में कटौती कर सकता है. नए गवर्नर संजय मल्होत्रा, जिन्होंने 11 दिसंबर को पूर्व गवर्नर शक्तिकांत दास की जगह ली है. लेकिन कुछ विशेषज्ञों ने कहा है कि फरवरी में भी वैश्विक अनिश्चितताओं के चलते आरबीआई के लिए ब्याज दरों में कटौती करना मुश्किल होगा.

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